असंच


चाय की प्याली मे जो बवंडर उठा
उसे सैलाब समझ बैठे
जहा कड़वाहट निगलनी थी
वहा कश्ती डुबो बैठे...

खाली झोली देखके
कभी रोये थे हम
अब उसीके बोझ से
दम निकल रहा है...

आँखे मिंच जिन सिक्कोंको
पानीमे फेंका था हमने
कहा पता था
वही सपनोंका बहाना थे...

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